बिदाई
बेटी की शादी नजदीक आ रही थी। पैसो का इन्तेजाम अभी तक नही हो पाया था। खेत मे उजड़ी फसल देख आँख मे आँसू आ जाते। क्यू किया विधाता ने ऐसा, क्यू खुशियों मे शमील नही हुआ वो? जब और कोई इन्तजाम ना हो सका, तो बेटी के प्यार के आगे वफादारी हार गयी। दिल पे पथर रख, उसने अपने बेल को बेचने का फैसला किया। घर मे किसी को बताये बिना, सौदा हो गया। पैसे मिल गये, अगले दिन सुबह बेल को ले जाना पक्का हुआ। रात भार ना निंद ना चेन। किसान के लिये बेल, पुत्र जैसा होता है। बेटी के भविस्या के लिये, उसने अपना जी मर लिया। भोर हुई, तो डबडबाई आंखो के समाने कुछ रंग दिखे। किसान हड़बड़ा के उठा। बेल के साथ उसकी औरत खडी थी, कुछ उदास। बेल को उसने खुब सुन्दर सजाया था। बोली "इतना तो हक बनता है ना इसका, और इस पर मेरा?" दोनो उसे बैठ निहारें लगे, और अश्रु ना रुखे। "बिदाई का दुख वो किसान बतायेगा, जिस्ने बेटी को विदा करने के लिये अपना सब कुछ बेच दिया हो।"